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लेखनी कहानी -09-Nov-2021

पल पल दिल के पास

तिषी कहाँ चली गई तुम?" "तुमने मुझे छोड़कर कहीं न जाने का वादा किया था"तुम एक पल भी मुझसे दूर नहीं रहती थी। मैं बैठकर अपने ऑफिस का काम करता और तुम मुझे एकटक निहारा करती। मैं बीच -बीच में तुम्हें देखता तो तुम कहती --" "रतन तुम अपना काम करो मैं तुम्हें डिस्टर्ब नहीं कर रही हूँ। " "मैं तुम्हारे पास ही बना रहूँ इसलिये मैंने जिस कम्पनी में काम शुरू किया तो वहाँ पर मैंने वर्क फ्रॉम होम के लिए शर्त रखी। कोरोना के समय में ज्यादातर लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे अतः मुझे भी अनुमति मिल गई।
तुम मेरी हर सुख -सुविधा का ध्यान रखती। समय-समय पर चाय -नाश्ता, खाना, कपड़े हर चीज मेरे सामने हाज़िर कर देती। हम घर से बाहर साथ ही निकलते चाहे वह मॉर्निंग वॉक हो,मंदिर हो,शॉपिंग हो ,मूवी हो या और भी कहीं। लोगों को हमारे प्यार पर रश्क होता।
लगता है किसी की नज़र लगा गई, हमारे प्यार को। तुम्हारी तबियत खराब हुई तब  भी मैं तुम्हारे साथ ही अस्पताल गया। वहाँ पर डॉक्टर ने मुझे तुमसे अलग कर दिया। तुम्हारा कोरोना टेस्ट हुआ तुम कोरोना पोसिटिव थीं। अब मेरा भी टेस्ट हुआ तो मैं भी पोसिटिव था लेकिन डॉक्टर ने कहा आप खतरे के बाहर हैं आप घर पर क्वारन्टीन रहिए। हम इनकी यहाँ पर देखभाल कर लेंगे। मुझे वहाँ से अकेले आना पड़ा बिन तुम्हारे। मैं सूखे पत्ते की भांति काँप रहा था। तुम्हारे बिना घर मुझे काट खाने को दौड़ रहा था।
तुम मेरे दिल में तो थीं लेकिन आँखों के सामने नहीं। मुझे तुम्हारी जुदाई सहन नहीं हो रही थी । मुझे घर से बाहर निकलने पर मनाही है। चीजें घर पर आ जाती थींलेकिन मुझे किसी चीज की ज़रूरत नहीं थी मुझे तो केवल तुम चाहिए थीं। मैं ईश्वर से दिनरात प्रार्थना करता कि तुम जल्दी ठीक होकर आ जाओ। फिर दोनों एक दूसरे के पास बैठे रहेंगे। एक दूसरे को निहारते रहेंगे। लेकिन प्रभु ने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी।
मैं चौदह दिन बीतने की प्रतीक्षा कर रहा था। चौदह दिनों बाद हमलोग एक दूसरे के दिल के पास रहने वाले थे लेकिन तुम्हारी हालात बिगड़ रही थी और मुझे इस बात का इल्म भी नहीं , मैं तो तुम्हारे ठीक होने की कल्पना कर रहा था। आठवें दिन डॉ का फोन आया और उसने मुझे वह खबर सुनाई  जो मैं स्वप्न में नहीं सोच सकता था।
डॉक्टर ने कहा-" आपकी पत्नी को हम नहीं बचा पाए। आपकी तबियत ठीक नहीं है आप घर से बाहर मत निकलना । अंतिम संस्कार की व्यवस्था हम कर लेंगे आप को जितने पैसे देने कहे जाएंगे आप ऑनलाइन ट्रांसफर कर देना। 
मैं तो तभी मर गया था  तिषी जब मैंने ये मनहूस खबर सुनी। मैं अपने रोम-रोम तक बेंच देता बस वे तुम्हें ठीक कर देते। मैंने ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर कर दिए ताकि तुम्हारा अंतिम संस्कार ठीक से हो सके लेकिन जब मैं ठीक हो गया तो मुझे पता चला कि उस हॉस्पिटल में कोरोना मृतकों की बहुत बदहाली हुई थी।
मेरी आत्मा चीत्कार उठी तब से  मेरा दिल ज़ार ज़ार रो रहा है। मुझे अब किसी चीज़ का होश नहीं रहता। अब तो मुझे तेरे दिल के पास रहने के लिये तेरे पास ही आना है। तुम  मेरे बिना चौदह  दिन नहीं रह सकी, मुझे पता है तुम बीमारी से नहीं मेरे विछोह में यहाँ से चली गई। अरे !जो एक पल मुझे देखे बिना नहीं रह पाती थी वह चौदह दिन तक कैसे रहती। कोई बात नहीं तिषी हम जल्दी मिलेंगे। उस बार ईश्वर ने मेरी नहीं सुनी लेकिन इस बार जरूर सुनेंगे और मैं जल्दी ही आऊँगा तेरे दिल के पास रहने।

"चली गई तुम वादे को तोड़कर,
पल पल दिल के पास रहने की।
तुमने बहुत कुछ किया मेरे लिए जानम!
अब मेरी बारी है वादे को पूरा करने की।"

स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
नई दिल्ली
7/11/21


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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

10-Nov-2021 05:38 PM

बहुत खूबसूरत लिखा मैम

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Khushi jha

10-Nov-2021 02:02 PM

वाह

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🤫

10-Nov-2021 12:05 AM

बेहतरीन कहानी है... मर्मस्पर्शी रचना है....

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